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एफआईआर से निकला लोकतंत्र का सच, सत्ता को आई आलोचना से जलन: सीजेएपत्रकार पर दर्ज हुए राजद्रोह के मुकदमे पर भड़का सीजेए सीजेए ने असम सरकार से मुकदमा खत्म करने की करी अपील खबर लिखना अब अपराध - सवाल पूछो तो राजद्रोह, कोट करो तो केस:*

*एफआईआर से निकला लोकतंत्र का सच, सत्ता को आई आलोचना से जलन: सीजेएपत्रकार पर दर्ज हुए राजद्रोह के मुकदमे पर भड़का सीजेए सीजेए ने असम सरकार से मुकदमा खत्म करने की करी अपील खबर लिखना अब अपराध - सवाल पूछो तो राजद्रोह, कोट करो तो केस:*


फतेहपुर। असम पुलिस द्वारा वरिष्ठ पत्रकार अभिसार शर्मा के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज किए जाने पर साइबर जर्नलिस्ट एसोसिएशन (सीजेए) ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। एसोसिएशन के राष्ट्रीय महासचिव शीबू खान ने इस कार्रवाई की कड़ी निंदा करते हुए इसे "लोकतंत्र के लिए काला दिन" बताया।
शीबू खान ने कहा, "किसी की बात को उद्धृत (क़ोट) करके खबर बनाना पत्रकारिता का मूल सिद्धांत है। यह कहाँ से गलत है? लगता है कि देश में लोकतंत्र खत्म होता जा रहा है। पुलिस की पत्रकारों के प्रति जलन भी इस एफआईआर से साफ झलकती है।" उन्होंने आगे कहा कि यह मामला पत्रकारिता की स्वायत्तता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक सुनियोजित हमला है। एसोसिएशन ने राज्य सरकार से तुरंत मामला वापस लेने और पत्रकारों के खिलाफ दमनकारी कार्रवाई बंद करने की मांग की है।
खबरों के अनुसार, वरिष्ठ पत्रकार अभिसार शर्मा ने एक डिजिटल न्यूज़ पोर्टल के लिए एक रिपोर्ट लिखी थी, जिसमें उन्होंने एक जज के बयान का ज़िक्र किया था जिसमें असम सरकार द्वारा महाबल सीमेंट को 3,000 बीघा ज़मीन आवंटित करने की बात कही गई थी, और इस फ़ैसले की आलोचना की थी। इसी रिपोर्ट में उन्होंने तथ्यों के साथ, मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की सांप्रदायिक राजनीति का भी ज़िक्र किया था जो उनके अपने बयानों पर आधारित थी, को शामिल किया था। जिसे प्रशासन 'आपत्तिजनक' और 'राष्ट्रविरोधी' मानता है। इस पूरे मामले में श्री शर्मा का कहना रहा है कि उन्होंने न्यूज़ रिपोर्टिंग के सभी मानकों का पालन करते हुए केवल एक घटना की रिपोर्ट की है और अपनी ओर से कोई राय व्यक्त नहीं की। हालाँकि, पुलिस का आरोप है कि श्री शर्मा ने "जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण तरीके से" ऐसी सामग्री प्रकाशित की है जिससे जनता के एक वर्ग के बीच असंतोष और अशांति फैलने का खतरा है। इसी प्रकरण में पुलिस द्वारा एफआईआर में भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 152, 196 और 197 का इस्तेमाल किया गया है।
इस पूरे मामले में अब तक ज्यादातर मीडिया संगठनों ने इस कदम की आलोचना करते हुए कहा है कि यह भारत के संविधान में दिए गए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। इसी कड़ी में साइबर जर्नलिस्ट एसोसिएशन के उत्तर प्रदेश इकाई के प्रदेश अध्यक्ष शहंशाह आब्दी ने कहा है कि ऐसे कदम से पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर गंभीर असर पड़ेगा और पत्रकार अपना कर्तव्य निभाने से डरने लगेंगे। वरिष्ठ पत्रकार अभिसार शर्मा का मामला सिर्फ एक पत्रकार का मुद्दा नहीं, बल्कि पूरे मीडिया जगत और लोकतंत्र का सवाल है। यदि सरकार और पुलिस प्रशासन आलोचना को राजद्रोह मानने लगे, तो यह साफ है कि देश में लोकतांत्रिक संस्थाएं खतरे में हैं और प्रेस की स्वतंत्रता लगातार सिकुड़ रही है।
साइबर जर्नलिस्ट एसोसिएशन ने केंद्र और राज्य सरकारों से अपील की है कि पत्रकारों के खिलाफ इस तरह की दमनात्मक कार्रवाई रोकी जाए और स्वतंत्र मीडिया को काम करने दिया जाए। इस दौरान साइबर जर्नलिस्ट एसोसिएशन के फतेहपुर जिलाध्यक्ष त्रिभुवन सिंह, खागा तहसील अध्यक्ष अभिमन्यु मौर्या व अन्य लोग उपस्थित रहे हैं।

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